Sunday 29 June 2014

हमसे ही हो रही है ये गलतियां



शहर में चाय की चौपाटी हो या अन्य कोई खाने पीने की दुकानें, मंदिर-मस्जिद या रेलवे स्टेशन हर जगह आम तौर एक समस्या हर किसी को देखने को मिलती है वो है भिक्षावृत्ती की समस्या, कोई अपने अपाहिज होने की दुहाई देता है तो कोई अपने हालात को बयां करता है।

ये सब समस्याएं तो  समझ भी आती है, लेकिन जब कोई बाल्टी के अंदर शनि महाराज की मूर्ति की गर्दन तक का तेल भरकर जब जय शनि देव कहता है तब लगता है कि अब अति हो रही है।

जिनके हाथ पैर भी सहीं सलामत है, जो शरीर से भी हट्टे-कट्टे है वो भी बाल्टी और अन्य भिक्षा मांगने के साधन लेकर चल देता है।

भोपाल शहर में ही बड़े लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है और वर्तमान समय में इसका दायरा और बढ़ता ही जा रहा है। समझ नहीं आता है कि क्या ये लोग कायर हैं ..? या सचमूच ही इनकी अपनी कोई ऐसी मजबूरियां है जो इन्हें ऐसा काम करने पर मजबूर  करती है। अगर ये लोग चाहे तो कोई भी रोजगार को अपना सकते हैं जो इनके लिए रोजी-रोटी का साधन बन सकता है।

इन्हीं लोगों के छोटे-छोटे बच्चे जिनकी अभी पढ़ने लिखने की उम्र है, उन्हें भी शिक्षा से वंचित कर इसी तरह के काम में लगा देते हैं। सबसे ज्यादा दुख तो इस बात  का होता है कि इनके पिता जो खुद कमाकर इन्हें बेहतर शिक्षा और भोजन मुहैया करा सकते हैं वो इन बच्चों द्वारा मांगकर लाए पैसों से शराब और अन्य नशे का सेवन करते हैं।


आज समाज के सामने यह बहुत बड़ी समस्या है, जिसे आप और हम ही बढ़ावा दे रहे हैं। समाज का हर व्यक्ति आज किसी न किसी प्रकार की परेशानी का सामना कर रहा है उसे लगता है कि अगर शनि भगवान वाली बांल्टी में एक सिक्का डालेगा तो उसे समस्या से मुक्ति मिल जाएगी, ऐसा करने पर इंसान सुख का अनुभव करता है। 

अरे भैया सचमूच सुख की अनुभूति तो तब मिलेगी जब हम किसी भीख मांगते नौजवान को सहीं रास्ता दिखाएंगे, भिक्षावृत्ति के शिकार छोटे-छोटे बच्चों के माता-पिता को खोजकर उन्हें बेहतर जिंदगी जीने के उपाय सुझाएंगे, बूढ़े असहायों को दर-दर की ठोंकरे न खानी पड़े इसके लिए हमें चकाचौंध और दिखावे वाली पश्चिमी सभ्यता को भूलकर हमें अपनी भारतीय संस्कृति को जीवंत करना होगा, जहां माता-पिता को पूजा जाता है। तब हम एक बेहतर समाज की कल्पना कर सकते है। 


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